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Tuesday 28 December 2010

kundli me rahu ki drsht yevm fal

            पिछले लेख में आपने पढ़ा कुंडली में प्रथम भाव से अष्टम भाव तक राहू की द्रष्टि पड़ती है, तो जातक को क्या सुभ- अशुभ फल देता है! आगे पढ़े नवम भाव से ध्दाद्श भाव तक राहू की द्रष्टि का जातक पर शुभ- अशुभ प्रभाव !
नवम भाव--> राहू की  पूर्ण द्रष्टि नवम भाव पर पड़ती है, तो जातक को आर्थिक- सम्पन्न, भोगी पराक्रमी एवं सन्तति -वान बनाता है! परन्तु बड़े भाई के सुख से वंचित कर देता है!
दशम भाव --> राहू पूर्ण द्रष्टि से दशम भाव को देखता है, तो राजसम्मान एवं उधोग वाला बनाता है, परन्तु माता -
विहीन बना सकता है! एवं जातक के पिता को कष्ट देता है!
एकादश भाव --> राहू पूर्ण द्रष्टि से एकादश भाव को देखता है, तो जातक को अल्प लाभ देता है! इसी के साथ जातक सन्तति कष्ट के साथ नीच कर्म में रत रहता है!
ध्दाद्श भाव --> राहू पूर्ण द्रष्टि से ध्दाद्श भाव को देखता है, तो जातक को शत्रुनाशक,कुमार्गी एवं गलत धन खर्च करने वाला एवं दरिद्री बनाता है!
विशेष --> राहू कुंडली में लग्न श्थान पर कर्क अथवा व्रश्चिक राशी का हो,तो जातक  सिध्दी प्राप्त कर ख्याति प्राप्त करता है! परन्तु राहू धनु अथवा मीन राशी का हो, तो पिशाच व्रत्ति उत्पन्न करता है!
                 राहू यदि शुभ श्थान में हो अथवा शुभ प्रभाव दे रह हो, तो जातक जीवन में  किसी जुआरी, शराबी या अपराध करने वाले के  सम्पर्क में रहने पर भी शुद्ध एवं, सात्विक प्रव्रत्ति का रहता है! 
           राहू कुंडली में अलग - अलग भाव में रहने पर जातक को क्या शुभ- अशुभ प्रभाव देता है, जानने के लिए
पढ़े आचार्य सुरेन्द्र. ब्लोग्सपोत.कॉमं
                                   इति शुभम                        
      

kundli me rahu ki drsht yevm fal

            राहू की द्रष्टि कुंडली में जब अलग -अलग भाव पर  पड़ती है, तो जातक पर क्या शुभ- अशुभ प्रभाव
पड़ता है! जानिये
प्रथम भाव में द्रष्टि -->राहू जब पूर्ण द्रष्टि से प्रथम भाव को देखता है, तो जातक को शारीरिक रोगी, वातविकारी,
उग्र-स्वभाव बाला एवं उधोग से अलग करता है! इसी के साथ अधार्मिक प्रवत्ति का एवं खिन्न चित्तवाला बनाता है!
द्धितीय भाव --> राहू जब पूर्ण द्रष्टि से दुसरे भाव को देखता है, तो जातक को धन नाश देता है, चंचल प्रवत्ति के
साथ परिवार से सुख-हीन बना देता है!
तृतीय भाव -->राहू जब पूर्ण द्रष्टि से तृतीय भाव को देखता है, तो पराक्रमी बनाता है, परन्तु पुरुषार्थी एवं सन्तानहीन
बनाता है!
चतुर्थ भाव -->राहू जब पूर्ण द्रष्टि से चतुर्थ भाव को देखता है, तो उदररोगी, मलिन बनाता है, इसी के साथ उदास एवं साधारण सुख देता है!
पंचम भाव -->राहू पूर्ण द्रष्टि से पंचम भाव को देखता है, तो भाग्यशाली , धनी एवं व्यवहार कुशल बनाता है! साथ ही
संतान सुख देता है!
षष्टम भाव -->राहू पूर्ण द्रष्टि से षष्टम भाव को देखता है, तो पराक्रमी एवं बलबान बनाता है! शत्रुनाशक, व्यय करने
वाला, एवं नेत्र पीड़ा बाला होता है!
सप्तम भाव -->राहू पूर्ण द्रष्टि से सप्तम भाव को देखता है, तो धनवान बनाता है, इसी के साथ विषयी कामी एवं नीच संगति करने वाला होता है!
अष्टम भाव -->राहू पूर्ण द्रष्टि से अष्टम भाव को देखता है, तो जातक को पराधीन बनाता है, इसी के साथ धननाशक,
कंठ में रोग एवं नीच कर्म करने वाला बनाता है! इसी के साथ जातक परिवार से अलग रहता है!

Saturday 18 December 2010

mantra

                                                              ग्रह रक्षा मंत्र
                 ॐ ह्रीं चामुंड भ्रकुटी अट्टहासे भीम दर्शने रक्ष रक्ष चोरे:  वजुवेभ्य: अग्रिभ्य : स्वापदेभ्य: दुष्ट -
                                          जनेभ्य: सर्वेभ्य सर्वोपद्रवेभ्य गंडी ह्रीं हो ठ: ठ !
             इस मंत्र को १०८ बार पढ़कर मकान के चारो तरफ रेखा खीच देने से वह घर दुष्ट आत्माएं , भूत ,
 प्रेत ,चोर , डाकू तथा दुष्ट व्यक्ति या हिंसक जन्तुओ के प्रवेश का भय , बिजली गिरने व आग लगने का भय तक भी नही रहता ! किसी शुभ तिथि घड़ी नक्षत्र या चन्द्र ग्रहण सूर्य ग्रहण में दस हजार बार पाठ करने से यह मंत्र सिद्ध हो जाता है !
                                ति मोहन  मंत्र
                          ॐ अस्य श्री सुरी मंत्र स्वार्थ वर्ण ! ऋषि इति शिपस स्वाहा !
           जिस स्त्री का पति उससे संतुष्ट न रहता हो उस स्त्री को निम्न मंत्र का १०८ बार प्रतिदिन नियम से जाप
करते हुए १०८ दिन तक पाठ करना चाहिए ! इससे पति पत्नी पर आकर्षित होगा तथा दोनों का जीवन आनन्दमय
हो जायेगा !
                               सरस्वती आकर्षण मंत्र
                                                 ॐ वाग्वादिनी स्वाहा मिन्सहरा !
                इस मंत्र को किसी भी शुभ तिथि में प्रात: उठकर नहा-धोकर पवित्र होकर सवा लाख बार जाप करने से
 देवी सरस्वती आकर्षित होकर विद्या दान देती है !
                        उपरोक्त मंत्र पूर्ण श्रद्धा के साथ करे पूर्ण लाभ होगा !

mantro ka prayog

                द्वितीय जानकारी में आपको मंत्रो का प्रयोग बता रहें है मंत्रो का प्रयोग केसे करना चाहिये एवं किस विधि से करना चाहिए ! अपने को साधक बनाने के नियम जानिये एवं किस स्थान पर करना चाहिए , जानिये !

साधना स्थल केसा हो -> मन्त्र साधना की सफलता में साधना का स्थान बहुत महत्व रखता है ! जो स्थान मन्त्र की
                                    सफलता दिलाता है सिद्ध पीठ कहलाता है ! मन्त्र की साधना के लिए उचित स्थान के रूप में
                                    तीर्थ स्थान , गुफा , पर्वत , शिखर , नदी , तट , वन , उपवन इसी के साथ बिल्वपत्र का व्रक्ष ,
                                    पीपल व्रक्ष अथवा तुलसी का पोधा सिद्ध स्थल माना गया है !
 आहार                    ->   मन्त्र साधक को सदा ही शुद्ध व पवित्र एवं सात्विक आहार करना चाहिए ! दूषित आहार
                                   को साधक ने नही ग्रहण करना चाहिए !
                                  आपके एवं जनकल्याण के लिए कुछ प्रयोग दे रहें है !
सर्व विघ्न हरण मंत्र -> ॐ नम: शान्ते प्रशान्ते ॐ ह्रीं ह्रां सर्व क्रोध प्रशमनी स्वाहा !
                                  इस मन्त्र को नियम पूर्वक प्रतिदिन प्रात:काल इक्कीस बार स्मरण करने के पश्चात मुख
                                  प्रक्षालन करने से तथा सायंकाल में पीपल के व्रक्ष की जड़ में शर्बत चढ़ाकर धूप दीप देने
                                 से घर के सभी लोग शान्तमय निर्विध्न जीवन व्यतीत करते है ! इसका इतना प्रभाव होता
                                 है कि पालतु जानवर भी बाधारहित  जीवन व्यतीत करता है !

Friday 17 December 2010

mantra sadhana ka time

                          मन्त्र साधना के लिए विशेष  समय , माह एवं तिथि विशेष नक्षत्र का ध्यान रखना चाहिए! जो
          आपकी जानकारी के लिए नीचे  दे रहें है !
१.       उत्तम माह ->  साधना हेतु कार्तिक , अश्विन बैशाख माघ , मार्गशीर्ष फाल्गुन एवं श्रावण मास उत्तम होता है !
२.      उत्तम तिथि -> मन्त्र जाप हेतु पूर्णिमा , पंचमी , द्वितीय ,सप्तमी ,दशमी एवं त्रयोदशी तिथि उत्तम है !
३.      उत्तम पक्ष    -> शुक्ल पक्ष में शुभ चन्द्र व शुभ दिन देखकर मन्त्र जाप करना चाहिए !
४.      शुभ दिन    -> रविवार , शुक्रवार , बुधवार एवं गुरुवार मन्त्र साधना के लिए उत्तम होते है !
५.      उत्तम नक्षत्र -> पुनर्वसु , हस्त , तीनो उत्तरा , श्रवण रेवती , अनुराधा एवं रोहिणी नक्षत्र मन्त्र सिद्धि हेतु उत्तम होते
                               है !
            आगे जानिये मन्त्र साधना में साधन आसन एवं माला की विशेषताये !
आसन   ->  मन्त्र जाप के समय कुशासन , म्रग्चर्म , बाघम्बर और ऊन का बना आसन उत्तम होता है !
माला ->    रुद्राक्ष, जयंती, तुलसी, स्फटिक, हाथीदांत , लालमुंगा , चंदन एवं कमल की माला से जाप सिध्द होते है !
              रुद्राक्ष की माला सर्वश्रेष्ठ होती है !

Thursday 16 December 2010

mantr tantr ki pribhasha

                  प्रथम जानकारी मे मन्त्र है क्या एवं कैसा करना चाहिये यह जानिये !
मन्त्र का अर्थ असीमित है , वैदिक ऋचाओ के प्रत्येक छन्द भी मन्त्र कहे जाते है !तथा देवी देवताओं की श्तुतियो
व यज्ञ हवन मे निस्चित किये गये शब्द समूहों को भी मन्त्र कहा जाता है !
             तंत्र शास्त्र मे मन्त्र का अर्थ भिन्न है ! तंत्र शास्त्रानुसार मन्त्र उसे कहते है ,जो शब्द पद या पद समूह जिस
देवता या शक्ति को प्रकट करता है , वह उस देवता या शक्ति का मन्त्र कहा जाता है !
           विध्दवानो ध्दारा मन्त्र की परिभाषाए निम्न प्रकार भी की गई है !
१.        धर्म कर्म एवं मोक्ष की प्राप्ति हेतु प्रेरणा देने वाली शक्ति को मन्त्र कहते है !
२.        देवता के सूक्ष्म शरीर को या इष्टदेव की क्रपा को मन्त्र कहते है
३.        दिव्य--शक्तियों की क्रपा को प्राप्त करने मे उपयोगी शब्द शक्ति को मन्त्र कहते है !
४.        अद्रश्य गुप्त --शक्ति को जाग्रत करके अपने अनुकूल बनाने बाली बिधा को मन्त्र कहते है !
५.         इस प्रकार गुप्त शक्ति को बिकसित करने वाली बिधा को मन्त्र कहते है !
             इस प्रकार मंत्रो का अनेक अर्थ है !

Monday 13 December 2010

sukh prapti

                 जन्म कुंडली में चतुर्थ भाव घर, वाहन, माता व सुख भाव का होता है ! इसी भाव से अंचल
       सम्पत्ति , भोतिक सुख सुविधा , तालाब , बावड़ी व घर का वातावरण जान सकते है ! इस भाव
       में विभिन्न प्रकार के सुख को जानिए गृह की उपस्थिति एवं उनकी द्रष्टि से !
१.    चतुर्थ भाव में बुध स्थित है एवं इसी भाव में शुभ ग्रहों की द्रष्टि पड़ रही है ! तो राजयोगी योग
       बनता है तथा जातक के घर में अनेक नोकर चाकर रहते है !
२.    चतुर्थ भाव में कारक गृह चन्द्रमा विराजमान है एवं यदि वह उच्च का या स्व राशी पर विराजमान
       है ! तथा उच्च ग्रहों की द्रष्टि इस भाव पर पड़ रही है तो जातक को सभी प्रकार के सुख प्राप्त होते
      है ! 
३.   इस भाव में सूर्य शुभ नही माना गया है ! नीच सूर्य जातक को धनहिन , भूमिहीन बना देता है तथा 
      बार-बार जातक का स्थान परिवर्तन होता है ! सिंह का सूर्य इस भाव में शुभ होता है ! 
४.   चतुर्थ भाव में चंद्रमा स्थित होने पर एवं शुभ ग्रहों के द्रष्टि पड़ने पर साथ में शुक्र पर चन्द्रमा की
      द्रष्टि पड़ने पर जातक के पास अनेक वाहन होते है !
५.   चतुर्थ भाव में यदि राहू  केतु विराजमान है जातक को धार्मिक प्रवत्ति का बना देते है ! ये चतुर्थ
       भाव में मोन रहते है !
६.    शनि का चतुर्थ भाव जातक को वृद्धावस्था में चीड़ - चिड़ा एवं प्रिय या सन्यासी बना सकता है ! 
       एवं नीच का शनि भिखारी जेसी हालत कर सकता है !
७.    चतुर्थ भाव का शुक्र शुभ ग्रहों की द्रष्टि जातक को भोतिक सुख देता है ! कभी कभी ऐसे जातक
        का भाग्य  शादी के बाद उदय होता है !
८.     चतुर्थ भाव में मंगल जातक को अपराधी प्रवृति का बना देता है ! एवं सब कुछ तबाह कर देता है ! इसकी
       शांति अवश्य करना चाहिए ! ( जिन जातको रहे )
९.    चतुर्थ भाव में उच्च का वृहस्पति होना एवं शुभ ग्रहों की द्रष्टि उस पर पड़ रही हो तो जातक को राज्य से धन
       प्राप्ति का योग बनता है एवं उच्च पद पर विराजमान होता है ! नीच का गुरु परिवार एवं भाई से द्वेष या
       दुश्मनी करा सकता है !

Thursday 9 December 2010

love marrige joytish ki nagar se

मनुष्य जीवन में १६ संस्कार शास्त्रों में बताएं गये है , जो जन्म से म्रत्यु तक होते है ! जेसे नामकरण संस्कार , विवाह संस्कार एवं संस्कारो में अंतिम संस्कार प्रमुख है !
                 विवाह संस्कार जीवन का सबसे महत्वपूर्ण संस्कार है ! जीवन का ग्रहस्थ आश्रम में प्रवेश किस योग से होता है यह महत्वपूर्ण है ! कुछ कुंडली में जातक के सामान्य विवाह योग होता है परन्तु कुछ कुंडली में प्रेम विवाह का योग होता है ! किस प्रकार प्रेम विवाह योग होता है जानिये !
               अधिकांश यह देखने में आता है कि वृषभ लग्न , कर्क लग्न , तुला लग्न , मेष लग्न , वृश्चिक लग्न एवं कुम्भ लग्न कि पत्रिका में प्रेम विवाह का योग बनता है !
             विवाह एवं दाम्पत्य का सम्बन्ध सीधा सप्तम भाव से होता है , परन्तु इन लग्नो में प्रेम विवाह के लिए पंचम भाव एवं सप्तम भाव का सम्बन्ध होता है अर्थात पंचम भाव का स्वामी एवं सप्तम भाव का स्वामी एक साथ बैठा हो या द्रष्टि सम्बन्ध हो रहा हो तो प्रेम विवाह निश्चित होता है ! पंचम भाव प्रेम भावना का स्थान है ! तथा सप्तम भाव विवाह का स्थान है ! प्रेम विवाह के लिए मंगल-शनी , मंगल-शुक्र , चन्द्र-शुक्र की युक्ति भी इस योग को बनाती है !
              यदि प्रेम विवाह हो जाता है तो उसकी सफलता पंचमेश , सप्तमेश एवं लग्नेश द्वादश ग्रह के संबंधो पर निर्भर करती है !
            प्रेम विवाह के लिए तीसरे भाव का स्वामी उच्च या बलवान होना बहुत आवश्यक है ! यही जातक को हिम्मत प्रदान करता है !

Friday 3 December 2010

updrav shant krne ka mantr

उपद्रव शांत करने के लिए चक्रेश्वरी देवी की आराधना करे !  नीचे दिये गये मन्त्र का २१ दिन तक दस माला प्रतिदिन करें ! २१ दिन के बाद प्रतिदिन एक माला फेरें ! यह मन्त्र अत्यंत लाभप्रद है ! इसके करने  से किसी भी प्रकार का उपद्रव होगा , वह शांत हो जायेगा !
मन्त्र >     ॐ ह्रीं श्रीं चक्रेश्वरी , चक्रवारूणी , 
               चक्रधारिणी चक्रवेगेन मम उपद्र्वम
               हन - हन शांति कुरु कुरु स्वाहा !

Saturday 27 November 2010

ghrh shanti ke upay

  1 .    कबूतर की बीट एवं लोबान को कंडे पर धूप देकर पुरे घर में धुआं करे , सुबह शाम अथवा रविवार ,
              बुधवार घर में शांति मिलेगी !
        २.   घर का मुखिया रात्रि में चोराहे पर बांटी ( आटे से गोल लड्डू नुमा ) बनाये , बांटी सिर्फ पाँच बनाये ,
              फिर उसका क्षेत्रपाल देवता के नाम से उसी स्थान पर भोग लगाकर रास्ता बदलकर घर आये ! घर में
              पूर्ण शांति मिलेगी ! यह कार्य चोदस , रविवार अथवा अमावस्या पर करने से विशेष लाभ मिलेगा !
             उपरोक्त शुभ टोटको का भारतीय परम्परा एवं संस्कार में बड़ा महत्व है इन टोटको को अपनाये और
             लाभ उठाये ! इति शुभम

Friday 26 November 2010

shkun - upshkun ( shubh - ashubh ) jyotish ki nagar se

                                                            !! जय श्री गणेशाय !!
मनुष्य को जीवन में कई समस्याओ का सामना करना पढ़ता है , एवं इन समस्याओ के निवारण हेतु किसी ज्योतिष
के पास जाते है अथवा अपने किसी भी अच्छे कार्य ( लड़का लडकी के सम्बन्ध , भूमि खरीदने ) से निकलते समय शुभ अशुभ संकेत होते है अथवा घटना घटती है ! जिससे जिस कार्य से जा रहे हो , उसकी सफलता असफलता का अनुमान लगाया जाता है इस पर विचार शिक्षित अशिक्षित दोनों करते है !
                            देखे घर से निकलते समय ( शकुन ) शुभ घटना एवं ( अपशकुन ) अशुभ घटना का संकेत !
                                                                 शकुन ( शुभ ) घटना
१.      यदि आप किसी कार्य से जा रहे है तो आपके सामने सुहागन महिला अथवा गाय आ जाये तो कार्य में 
        सफलता मिलती है !
२.     जाते समय आप कपड़े पहन रहे है और जेब से पैसे गिरे तो धन प्राप्ति का संकेत है ! कपड़े उतारते समय भी
        ऐसा हो तो शुभ होता है !
३.     यदि आपके यहाँ सोकर उठते से ही कोई भीखरी मांगने आ जाय तो ये समझना चाहिये ! आपके द्वारा दिया
        गया पैसा ( उधारी ) वापस आ जायेगा ! ( बिना मांगे )
४.     आप सोकर उठे हो उसी समय नेवला आपको दिख जाये तो गुप्त धन मिलने कई सम्भावना रहती है !
५.     आप किसी कार्य से जा रहे हो तब आपके सामने कोई भी व्यक्ति गुड  ले जाता हुआ दिखे तो आशा से अधिक
        लाभ होता है ! 
६.     लड़की के लिए आप वर तलाश करने जा रहे हो तब घर से निकलते समय चार कुंवारी लड़कियाँ बातचीत
        करते मिल जाये तो शुभ योग होता है !
७.    यदि शरीर पर चिड़िया गंदगी कर दे , तो आपको समझना चाहिये आप दरिद्रता से दूर हो जाओगे !
                                   ये शुभ शकुन है इसी प्रकार अपशकुन होते है जानिये !
अपशकुन ( अशुभ ) विचार
१.      कार्य पर जाते समय यदि बिल्ली रास्ता काट जाये तो कार्य असम्भव होगा , आप घर वापस आकर या थोड़ा
         विश्राम कर आगे जाये तब कार्य सफल होगा !
२.      कार्य पर जाते समय कोई दुष्ट प्रक्रति वाला , व्यभिचारी अथवा अन्यायी ,व्यभिचरिणी सामने आ जाये तो
         कार्य सफल नही होता !
३.      शुभ कार्य के लिए विचार चल रह हो तब यदि छिपकली की आवाज सुनाई दे तो कार्य की असफलता
         होती है !
४.      घर में किसी देवता की मूर्ति अथवा चित्र टूट जाये तो म्रत्यु अथवा म्रत्यु समान कष्ट हो सकता है !
         निवारण के लिए राम रक्षा स्त्रोत अथवा दुर्गा की आराधना करे !
५.      यदि आपको तारे आकाश में डूबते दिखाई दे तो स्वास्थ्य ख़राब होने सूचना होती है !इसी के साथ नॉकरी
         में खतरा एवं आर्थिक तंगी आने लगती है !
६.      आपके घर उल्लू की चिल्लाने की आवाज आ रही हो तो भुत बाधा का डर रहता है अथवा अपनी बाधा
         से ग्रसित हो सकते है ! विशेषत स्त्री !
७.     कुत्ते का रोना अथवा श्रगाल के रोने से रिश्तेदार , अपने वाले या पड़ोसी , मुहल्ले में कष्ट ( मोंत ) की
        सम्भावना रहती है !
विशेष >    घर में उल्लू गिरे तो मान हानि , आयु हानि होती है ! जंगली कबूतर नही पाले अशुभ मन जाता है !
               इसकी शांति के लिए यज्ञ  पूजन अथवा जप करना चाहिए !
  

Thursday 25 November 2010

bhom ka kundli me pribrman

नों ग्रह कुंडली पर जब परिभ्रमण करते है , तो जातक को शुभ अशुभ फल देते है ! भोम चन्द्र कुंडली अनुसार
जब भ्रमण करता है!  तो प्रत्येक भाव (स्थान) पर अलग अलग फल देता है ! जानिये !
प्रथम भाव में  >   परिजनों से द्वेष कराता है! रोग , आर्थिक तंगी , राज्याधिकारी से कष्ट तथा आयु की कमी करता है !
दुसरे भाव में >     शत्रुओ को बढ़ाता है एवं  शत्रुओ से नुकसान कराता है ! अधिक खर्च , धन की कमी एवं मानसिक
                         परेशानी देता है !
तीसरे भाव में >   धनागमन कराता है एवं स्वास्थ्य में लाभ देता है ! इच्छाओ की पूर्ति कराता है  तथा मान सम्मान
                        में बढ़ोतरी कराता है ! भोतिक सुख बढ़ाता है !
चोथे भाव में >   परिवार एवं समाज में मान सम्मान में बढ़ोतरी कराता है ! परन्तु दुश्मनों की बढ़ोतरी एवं बीमारी
                        बढ़ाता है !
पाचवे भाव में >  कष्ट कारक होता है ! रोग के साथ हानि एवं रिश्तेदारों से कष्ट देता है !
छटवें भाव में >   शत्रुओ पर विजय दिलाता है एवं कार्य में सफलता देता है ! मान  सम्मान की वृद्धी कराता है !
                          धनागमन के रास्ते बनाता है एवं भोतिक सुख सुविधाए देता है !
सातवे भाव में >   पत्नी से कलह कराता है ! अनेक प्रकार के रोग एवं आर्थिक तंगी देता है ! मंगल सप्तम भाव
                         में रहने पर मित्रो से झगड़ा करवाता है ! सतर्क रह कर कार्य करे ! 
आठवे भाव में >   बीमारी के साथ कमजोरी देता है एवं धन की हानि देता है ! व्यापार कम होता है !
नवम भाव में >   अस्त्र शस्त्रों से चोट पहुचता है ! जब भोम नवम भाव में हो तो यात्रा भी कष्टप्रद होती है ! सम्मान
                         में कमी होती है ! धन की हानि होती है !नवम भाव के भ्रमण में भोम दुर्घटना करा सकता है
                        लेकिन १५ डिग्री पर रहने से शुभ फल देता है !
दसवे भाव में  >   प्रत्येक कार्य में असफलता देता है ! बीमारी देता है ! वाहन न चलाये अथवा बचे !
ग्यारवे भाव में >  आर्थिक सम्पन्नता देता है एवं जातक को जमीन जायदाद दिलाता है ! भोतिक सुख में व्रद्धी
                         कराता है !
बारवे भाव में >  खर्च में बढ़ोतरी के साथ परेशानी देता है ! पत्नी से झगड़े एवं मानसिक कष्ट देता है ! कभी दूसरी
                        ओरतो से भी कष्ट देता है ! रिश्तेदारों से मन मुटाव एवं सम्मान में कमी कराता है !
                                                              उपाय एवं निदान 
                          मंगल जब अशुभ फल दे तो सरलतम उपाय करे ! मंगलवार के दिन तांबा , स्वर्ण , केशर ,मूंगा,
 लाल वस्त्र , लाल चन्दन ,लाल फुल , गेंहू ,गूढ़ , घी , मसूर की दाल ये सभी वस्तुए सूर्योदय के समय या सूर्योदय के दो घंटे के बीच शिव मंदिर या पंडित को दान करे !
             इसी के साथ ॐ अंगारकाय  नमहा के ११००० हजार जाप कराए !

Tuesday 23 November 2010

fivar totke

मनुष्य हमेशा नई ऊर्जा के साथ जीना चाहता है ! जिससे वह हमेशा प्रसन्न रह सके ! एवं उन्नति के कदम चूमे नई
ऊर्जा , नई उमंग के लिए स्वस्थ रहना परम आवश्यक है ! प्रत्येक विद्वानों ने , डाक्टरों ने , पंडितो ने यही लिखा है , कहा
है की स्वस्थ्य व्यक्ति बिना परेशानी के अपना मन किसी भी उद्देश्य को पूर्ण करने में लगा सकता है !
                          हमारे यहा कहावत है > परम सुख निरोगी काया  !
निरोगी काया को रखने के लिए अपनाए कुछ टोटके ! क्योकि स्वस्थ शरीर में ही एक स्वस्थ आत्मा निवास करती है !
ज्वर ( बुखार ) नाशक टोटका  >  यदि आपका ज्वर सरे उपाय कर लेने के बाद भी ठीक नही हो रह हो , तो प्रभु पवन पुत्र हनुमानजी की शरण में जाये, क्योकि उन की क्रपा से रोग दूर हो जाते है !
                                                           नाशे रोग हरे सब पीड़ा 
अमावस्या या शनिवार के दिन सूर्यास्त के बाद हनुमानजी के मंदिर में जाकर प्रणाम करके उनके चरणों का सिंदूर
ले आये ! फिर ये मन्त्र को सात बार पढकर मरीज के मस्तिष्क पर लगा दे !
                                     मनोजवं मारुत्तुल्य्वेगम , जितेन्द्रिय बुद्धिमतां वरिष्ठम !
                                  वातात्मजं वानरयूथ मुख्यम , श्रीरामदूत शरणम प्रवध्ये !!
                                              ज्वर शीघ्र शांत हो जायेगा !

Monday 22 November 2010