राशी के प्रथम चरण में मेष एवं अंतिम चरण में मीन आता है! पूर्वाभाद्रपद के अंतिम चरण से रेवती नक्षत्र
के अंतिम चरण तक मीन राशी बिधमान रहती है! इस राशी का स्वामी गुरु है!
इस लग्न में जन्म वाला जातक लग्न का स्वामी शुभ होने पर सुंदर, रूपवान,धनी, ईमानदार अपने कार्य में
निष्ठां रखने वाला एवं कार्य क्षेत्र में माननीय पद पर पहुँचने वाला एवं सीधे स्वभाव वाला जरूरत मंद व्यक्ति की मदद
करने वाला होता है, एवं लेखक या कवि बनाने के योग बनते है! परन्तु लग्न में क्रूर ग्रह स्थित हो, या उसकी द्रष्टि
पड़ रही हो,तो जातक मादक द्रव्य लेने बाला या व्यभिचारी शराबी हो सकता है, अथवा होने के प्रबल योग रहते है!
लेखक, दुसरो की हमेशा सहायता करने वाला, गुप्त बिधा का ज्ञाता, देश भक्ति रखने वाला व्यक्ति इसी लग्न में
पैदा होता है! इस लग्न के जातक समाज सेवी, राजनीती, तथा स्वास्थ्य सेवा में नर्स की नॉकरी करना ज्यादा पसंद
करते है!
लग्नेश गुरु तीसरे भाव में हो, तो भैयो की संख्या ज्यादा एवं बारहवे भाव में हो, तो पिता से सहयोग की सम्भावना बड़ती है!
मीन लग्न में उत्पन्न जातक की कुंडली में सातवे भाव में शनी या शुक्र की द्रष्टि पड़ जाये, तो तो पत्नी से तलाक होने संभावना बड़ जाती है!
मीन लग्न में यदि शुक्र उच्च का हो तो व्यक्ति संगीत में रूचि रखने वाला, कलाकार बनाता है!
मीन लग्न की कुंडली में मंगल बारहवे भाव में होने पर या उसकी दशा महादशा आने पर किसी भी विभाग या
देश का शासक बनाता है! परन्तु यदि शनी की द्रष्टि पड़ रही हो, तो जेल भिजवा सकता है!
लग्नाधिपति गुरु यदि पंचम भाव में विराजमान हो, तो अनेक प्रकार की यात्रा करवाता है, एवं गुरु महादशा में उच्च पद पर पहुँचाता है!
इस लग्न में बुध अच्छा नही होता है, इसकी (बुध) की महादशा में स्थान परिवर्तन कराता है! यदि बुध व्यय भाव में बैठा है, तो ग्रहस्थी में स्वास्थ्य खराब, मित्र, परिवार से झगडा करा सकता है!
मीन लग्न वालो ने पुखराज धारण करना चाहिए!
इति शुभम
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