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Thursday 9 December 2010

love marrige joytish ki nagar se

मनुष्य जीवन में १६ संस्कार शास्त्रों में बताएं गये है , जो जन्म से म्रत्यु तक होते है ! जेसे नामकरण संस्कार , विवाह संस्कार एवं संस्कारो में अंतिम संस्कार प्रमुख है !
                 विवाह संस्कार जीवन का सबसे महत्वपूर्ण संस्कार है ! जीवन का ग्रहस्थ आश्रम में प्रवेश किस योग से होता है यह महत्वपूर्ण है ! कुछ कुंडली में जातक के सामान्य विवाह योग होता है परन्तु कुछ कुंडली में प्रेम विवाह का योग होता है ! किस प्रकार प्रेम विवाह योग होता है जानिये !
               अधिकांश यह देखने में आता है कि वृषभ लग्न , कर्क लग्न , तुला लग्न , मेष लग्न , वृश्चिक लग्न एवं कुम्भ लग्न कि पत्रिका में प्रेम विवाह का योग बनता है !
             विवाह एवं दाम्पत्य का सम्बन्ध सीधा सप्तम भाव से होता है , परन्तु इन लग्नो में प्रेम विवाह के लिए पंचम भाव एवं सप्तम भाव का सम्बन्ध होता है अर्थात पंचम भाव का स्वामी एवं सप्तम भाव का स्वामी एक साथ बैठा हो या द्रष्टि सम्बन्ध हो रहा हो तो प्रेम विवाह निश्चित होता है ! पंचम भाव प्रेम भावना का स्थान है ! तथा सप्तम भाव विवाह का स्थान है ! प्रेम विवाह के लिए मंगल-शनी , मंगल-शुक्र , चन्द्र-शुक्र की युक्ति भी इस योग को बनाती है !
              यदि प्रेम विवाह हो जाता है तो उसकी सफलता पंचमेश , सप्तमेश एवं लग्नेश द्वादश ग्रह के संबंधो पर निर्भर करती है !
            प्रेम विवाह के लिए तीसरे भाव का स्वामी उच्च या बलवान होना बहुत आवश्यक है ! यही जातक को हिम्मत प्रदान करता है !

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