प्रथम जानकारी मे मन्त्र है क्या एवं कैसा करना चाहिये यह जानिये !
मन्त्र का अर्थ असीमित है , वैदिक ऋचाओ के प्रत्येक छन्द भी मन्त्र कहे जाते है !तथा देवी देवताओं की श्तुतियो
व यज्ञ हवन मे निस्चित किये गये शब्द समूहों को भी मन्त्र कहा जाता है !
तंत्र शास्त्र मे मन्त्र का अर्थ भिन्न है ! तंत्र शास्त्रानुसार मन्त्र उसे कहते है ,जो शब्द पद या पद समूह जिस
देवता या शक्ति को प्रकट करता है , वह उस देवता या शक्ति का मन्त्र कहा जाता है !
विध्दवानो ध्दारा मन्त्र की परिभाषाए निम्न प्रकार भी की गई है !
१. धर्म कर्म एवं मोक्ष की प्राप्ति हेतु प्रेरणा देने वाली शक्ति को मन्त्र कहते है !
२. देवता के सूक्ष्म शरीर को या इष्टदेव की क्रपा को मन्त्र कहते है
३. दिव्य--शक्तियों की क्रपा को प्राप्त करने मे उपयोगी शब्द शक्ति को मन्त्र कहते है !
४. अद्रश्य गुप्त --शक्ति को जाग्रत करके अपने अनुकूल बनाने बाली बिधा को मन्त्र कहते है !
५. इस प्रकार गुप्त शक्ति को बिकसित करने वाली बिधा को मन्त्र कहते है !
इस प्रकार मंत्रो का अनेक अर्थ है !
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